BA Semester-1 Pracheen Bhartiya Itihas - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2636
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

प्रश्न- वैष्णव धर्म के उद्गम के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।

अथवा
वैष्णव धर्म के विषय में आप क्या जानते हैं?
सम्बन्धित लघु प्रश्न
1. वैष्णव धर्म के उदगम की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
2. वैष्णव धर्म पर संक्षिप्त लिखिए।
3. वैष्णव धर्म के केन्द्र कौन-कौन से हैं?
4. वैष्णव धर्म का अन्य धर्मों से सम्बन्ध बताइये।
5. वैष्णव धर्म का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
6. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए -
(a) चतुर्व्यूह सिद्धान्त, (b) चतुर्व्यूह पूजा।

उत्तर -

वैष्णव धर्म का उद्गम

वैष्णवों एवं विष्णु के भक्तों के लिए यह देवता विश्व एवं समस्त पदार्थों का जन्मदाता है। हिन्दू धर्म की एक सर्वाधिक प्रसिद्ध सृष्टि सम्बन्धी कथा के अनुसार वह आदितम सिन्धु में सहस्र फणधारी शेषनाग पर शयन करता है। जब वह निद्रामग्न होता है तो उसकी नाभि से एक कमल की उत्पत्ति होती है और उस कमल पर विश्वस्ययिता ब्रह्म का जन्म होता है जो संसार की सृष्टि करता है। एक बार जब सृजन हो जाता है। विष्णु की निद्रा भंग हो जाती है और वह उच्चतम स्वर्ग बैकुण्ठ में शासन करता है।

वासुदेव कृष्ण : वासुदेव कृष्ण के काल के सम्बन्ध में पर्याप्त मतभेद है। सामान्य रूप से इसका समय महाभारत का काल समझना चाहिए, किन्तु महाभारत के काल में भी मतभेद हैं। कुछ विद्वानों ने छान्दोग्य उपनिषद् में वर्णित देवकी पुत्र कृष्ण को ही वासुदेव कृष्ण माना है।

श्रीकृष्ण: श्रीकृष्ण के जीवन के साथ गोपी लीला की कुछ कथायें एवं राधा आदि गोपियों के साथ क्रीड़ाएं भी जुड़ी हुई हैं। इनका वर्णन महाभारत के हरिवंश पुराण तथा वायु एवं भागवत पुराणों में मिलता है। इनके उद्गम के सम्बन्ध में कोई सार निश्चित रूप से कहना कठिन है। 

वैष्णव धर्म का विकास

वैष्णव धर्म के विकास की पहली दशा वासुदेव कृष्ण को वैदिक देवता विष्णु से अभिन्न समझा जाता था। यह भगवद् गीता के समय तक पूर्ण हो चुकी थी। इससे वासुदेव की पूजा, भागवत धर्म और वैष्णव धर्म पर्याय समझे जाने लगे।

दूसरी दशा

वासुदेव कृष्ण और विष्णु का एक महापुरुष नारायण से अभिन्न समझा जाता था। नारायण के आरम्भिक स्वरूप का प्रतिपादन विभिन्न ग्रन्थों में अलग-अलग रीति से किया गया है। शतपथ ब्राह्मण में ऐसे पुरुष का नाम है जिसने प्रजापति के आदेश से तीन बार यज्ञ किया था। इसी ग्रन्थ में अन्यत्र नारायण द्वारा पाँच दिन-रात तक चलने वाले एक यज्ञ (पाँचरात्रसत्र) करने का वर्णन है।

चतुर्व्यूह सिद्धान्त : यह वैष्णव धर्म का प्रधान मन्तव्य था। यद्यपि अन्त में वैष्णव धर्म में केवल वासुदेव कृष्ण की पूजा को ही प्रधान स्थान मिला किन्तु आरम्भ में वासुदेव कृष्ण के अतिरिक्त परिवार के चार अन्य व्यक्तियों की भी पूजा प्रचलित थी। अतः यह चतुर्व्यूह सिद्धान्त कहलाता था। इसके अनुसार प्रत्येक भागवत धर्मानुयायी के लिए सर्वोच्च उपास्य देवता वासुदेव थे। इनकी पूजा पर व्यूह, विभव, अन्तर्यामी और अर्चा नामक पाँच रूपों में की जाती थी। इन सब में उनका उच्चतम रूप था। व्यूह उनसे प्रादुर्भूत होने वाले और विभव उनका अवतार ग्रहण करने वाले रूप थे। अन्तर्यामी के रूप में वे प्रत्येक व्यक्ति के कार्यों का आन्तरिक रूप से नियंत्रण करने वाले तथा अर्चा का अभिप्राय भगवान की स्थूल मूर्तियों की पूजा से था। भगवत् गीता में भगवान के इन रूपों की उपासना का विस्तृत प्रतिपादन है।

चतुर्व्यूह पूजा यह भागवत धर्म में किस समय सम्मिलित हुई यह प्रश्न बड़ा विवादास्पद है। व्यूहवाद का प्राचीनतम उल्लेख वेदान्त दर्शन में मिलता है किन्तु इसका स्पष्ट एवं विस्तृत प्रतिपादन शंकराचार्य द्वारा 8वीं शताब्दी ईए में और रामानुज द्वारा 12वीं शताब्दी ईए में किये गये वेदान्त दर्शन के भाष्यों में ही उपलब्ध होता है। ये भाष्य बहुत बाद में लिखे गये थे। दूसरी शताब्दी ईए पूए में यह सिद्धान्त विकसित हो चला था क्योंकि पतंजलि ने पाणिनि के एक सूत्र के भाष्य में आत्मचतुर्थ की व्याख्या करते हुए यह कहा गया है कि जनार्दन इनमें चौथा होता है।

वैष्णव धर्म के केन्द्र

प्राचीन अभिलेखों से यह विदित होता है कि इस युग में इस सम्प्रदाय के दो बड़े केन्द्र मथुरा और विदिशा थे। मथुरा श्रीकृष्ण की जन्मभूमि होने से इसका प्राचीनतम और प्रसिद्ध था। इस विषय में मेगस्थनीज की इण्डिका में भी जिक्र हुआ है।

मथुरा: पहली शताब्दी ईए के मथुरा से उपलब्ध होने वाले अभिलेख यही प्रदर्शित करते हैं कि ईस्वी सन् आरम्भ होने के पहले ही यहाँ वासुदेव की पूजा सुप्रतिष्ठित हो चुकी थी। महाक्षत्रप शोडास के समय में एक लेख में भगवान वासुदेव के एक पवित्र मन्दिर ( महास्थान) में तोरण द्वार वेदिका और चतुष्शाल (चतुष्कोण) रचना बनवाने का वर्णन है। इसी स्थान से दूसरी शताब्दी ईए की कृष्ण जन्माष्टमी की कथा को चित्रित करने वाली प्राचीनतम प्रस्तर मूर्ति मिली है।

विदिशा : मथुरा के अतिरिक्त वैष्णव सम्प्रदाय का दूसरा प्रधान केन्द्र मध्य प्रदेश में विदिशाल (भेलसा) का प्रदेश था। यहाँ बेसनगर में पहली शताब्दी ईए पूए के अनेक खण्डित अभिलेख मिले हैं। इनमे भागवतों के एक मन्दिर का उल्लेख है। यह सम्भवतः पहली शताब्दी ईए पूए से भी अधिक पुराना मन्दिर था। सम्भवतः ऐसे ही किसी मन्दिर के सम्मुख यूनानी राजदूत हेलियोडोरिस ने भागवत् धर्मानुयायी होने के कारण एक गरुड़ध्वज किया था। इस ध्वज का स्तम्भशीर्ण तो अब लुप्त हो चुका है।

वैष्णव धर्म के सिद्धान्त और प्रशाखायें

प्राचीनकाल से लेकर लगभग आठवीं शताब्दी तक वैष्णववाद का ऐतिहासिक सर्वेक्षण, साहित्यिक, पुरालेखीय तथा पुरातत्वीय स्रोतों के आधार पर किया गया है। अब वैष्णव धर्म के आधारभूत सिद्धान्तों का और उन आचार्यों के योगदान का उल्लेख कर देना उचित होगा जिन्होंने उत्तर भारत और दक्षिण भारत में भी वैष्णवधर्म के विभिन्न सम्प्रदायों की स्थापना की। इनमें सबसे प्रमुख हैं रामानुज (11वीं शताब्दी) द्वारा और माधव अथवा आनन्दतीर्थ ( 13वीं शताब्दी) के स्थापित किये सम्प्रदाय। इन्होंने आचार्य शंकर (आठवीं शताब्दी) के अद्वैतवाद के विरोध में द्वैतवाद के सिद्धान्तों का प्रचार किया। तीसरा सम्प्रदाय रामानन्द (14वीं शताब्दी) का था जिसने उपासना के क्षेत्र में जात-पांत को समाप्त करके लोकभाषा का प्रयोग किया। इनमें अन्तिम वल्लभाचार्य ( 16वीं शताब्दी, जो अपने पुष्टिमार्ग अर्थात् प्रचुरता के मार्ग' के लिए प्रसिद्ध हैं। अन्य बीसियों गुरुओं ने अपनी रीति से वैष्णव धर्म और कृष्ण पूजा का प्रचार किया। इसमें 14वीं तथा 15वीं शताब्दी में हुए नामदेव, उमापति, विद्यापति और चण्डीदास और 15वीं तथा 16वीं शताब्दी में हुए नरसी मेहता, कबीर, चैतन्य, मीराबाई, सूरदास, तुलसीदास और असम में शंकरदेव विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

भक्ति सम्प्रदाय कुछ एक मूल सिद्धान्तों पर आधारित है। इनमें मुख्य बात है कि ईश्वर तर्क या मुक्ति के क्षेत्र से परे है और उसे केवल अनन्य भक्ति द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। केवल तप और धार्मिक अनुष्ठानों द्वारा ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। भागवत धर्म में भगवान (ईश्वर) की कृपा पर बहुत जोर दिया गया है। बौद्धिक, नैतिक या आध्यात्मिक कोई भी मानवीय उपलब्धि भगवान से मिलने के लिए पर्याप्त नहीं है। भगवान ही भक्त को ज्ञान प्रदान करता है और भक्त के सम्मुख प्रकट होने का निर्णय वह स्वयं ही करता है। इस प्रकार भगवत् गीता भक्त को आदेश देती है कि वह सब धार्मिक अनुष्ठानों को और कर्म को त्याग दे और उस (भगवान) की शरण ले, जो अकेला ही ऐसा है, जो उसे सब पापों से मुक्ति दिला सकता है, भक्ति के स्वरूप की परिभाषा करते हुए उसे ज्ञान और कर्म के परित्यागपूर्वक सांसारिक विषयों में अनुराग से रहित, भगवान के प्रति तीव्र प्रेम कहा गया है।

ज्ञान का सम्बन्ध भक्ति से जोड़ दिया गया है। भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है ज्ञानी भक्त विचार द्वारा सदा मुझसे संयुक्त रहता है और अनन्य भक्ति द्वारा मुझमें अनुरक्त रहता है। यह आवश्यक नहीं है कि भक्ति का जीवन निष्कृयतां का जीवन है। वस्तुतः सच्चे कर्म से, जिसमें संसार में रहकर कर्तव्य की भावना अन्तर्निहित हैं। नारद ने अपने ग्रन्थ पंचरात्र में कहा है कि अर्थ (धन) और काम (नारी) दो ऐसी चट्टानें हैं जिनसे टकराकर अनेक आत्माओं के जहाज डूब जाते हैं।

वैष्णव धर्म का अन्य धर्मों से सम्बन्ध

जैन धर्म के साथ ईसा की आरम्भिक शताब्दियों में उत्कर्ष प्राप्त करने वाले भागवत धर्म ने इस समय अपनी प्रतिस्पर्धा धार्मिक विचारधाराओं पर भी आदर का भाव था। उनके मतानुसार वासुदेव बाईसवें तीर्थकर अरिष्टनेमि के निकट सम्बन्धी थे।

बौद्ध धर्म के साथ बौद्ध धर्म पर भी वैष्णव धर्म ने गहरा प्रभाव डाला। भागवतों की भाँति बौद्ध अहिंसा को बहुत महत्व देते हैं। अश्वघोष ने महामानश्रद्धोत्पाद में तथा पहली शताब्दी ईए के सद्धर्मपुण्डरीक पर भगवत गीता का स्पष्ट प्रभाव है।

ईसाई धर्म के साथ : ईसाइयत और वैष्णव धर्म के कुछ ऊपरी सादृश्यों को देखते हुए बेवर आदि कुछ पाश्चात्य विद्वानों ने यह कल्पना की थी कि ईसाइयत ने वैष्णव धर्म पर गहरा प्रभाव डाला और ईसा की जीवनी के आधार पर कृष्ण की जीवनी में अनेक घटनायें जोड़ी गयीं, भक्ति सम्प्रदाय का जन्म ईसाइयत के साथ सम्पर्क का परिणाम था। किन्तु परवर्ती अनुसंधानों से यह प्रमाणित हो चुका है कि उपर्युक्त धारणायें अधूरे अवैज्ञानिक और संदिग्ध प्रमाणों के आधार पर बना ली गयीं थीं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने हेतु उपयोगी स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्राचीन भारत के इतिहास को जानने में विदेशी यात्रियों / लेखकों के विवरण की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व के विषय में बताइए। पुरातत्व के अन्य उप-विषयों व उसके उद्देश्य व सिद्धान्तों से अवगत कराइये।
  4. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में आप क्या जानते हैं?
  6. प्रश्न- भास की कृति "स्वप्नवासवदत्ता" पर एक लेख लिखिए।
  7. प्रश्न- 'फाह्यान पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  8. प्रश्न- दारा प्रथम तथा उसके तीन महत्वपूर्ण अभिलेख के विषय में बताइए।
  9. प्रश्न- आपके विषय का पूरा नाम क्या है? आपके इस प्रश्नपत्र का क्या नाम है?
  10. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
  12. प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
  13. प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए
  14. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में आप क्या समझते हैं?
  15. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के सामाजिक व्यवस्था व आर्थिक जीवन का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सिन्धु नदी घाटी के समाज के धार्मिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  17. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था एवं कला का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- हड़प्पा संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  23. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  25. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  26. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  27. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  28. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता में शिवोपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- सैन्धव धर्म में स्वस्तिक पूजा के विषय में बताइये।
  30. प्रश्न- ऋग्वैदिक अथवा पूर्व वैदिक काल की सभ्यता और संस्कृति के बारे में आप क्या जानते हैं?
  31. प्रश्न- विवाह संस्कार से सम्पादित कृतियों का वर्णन कीजिए तथा महत्व की व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- वैदिक काल के प्रमुख देवताओं का परिचय दीजिए।
  33. प्रश्न- ऋग्वेद में सोम देवता का महत्व बताइये।
  34. प्रश्न- वैदिक संस्कृति में इन्द्र के बारे में बताइये।
  35. प्रश्न- वेदों में संध्या एवं ऊषा के विषय में बताइये।
  36. प्रश्न- प्राचीन भारत में जल की पूजा के विषय में बताइये।
  37. प्रश्न- वरुण देवता का महत्व बताइए।
  38. प्रश्न- वैदिक काल में यज्ञ का महत्व बताइए।
  39. प्रश्न- पंच महायज्ञ' पर टिप्पणी लिखिए।
  40. प्रश्न- वैदिक देवता द्यौस और वरुण पर टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- वैदिक यज्ञों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- वैदिक देवता इन्द्र के विषय में लिखिए।
  43. प्रश्न- वैदिक यज्ञों के सम्पादन में अग्नि के महत्त्व को व्याख्यायित कीजिए।
  44. प्रश्न- उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक विश्वासों एवं कृत्यों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  45. प्रश्न- वैदिक काल में प्रकृति पूजा पर एक टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- वैदिक संस्कृति की विशेषताएँ बताइये।
  47. प्रश्न- अश्वमेध पर एक टिप्पणी लिखिए।
  48. प्रश्न- आर्यों के आदिस्थान से सम्बन्धित विभिन्न मतों की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में आर्यों के भौगोलिक ज्ञान का विवरण दीजिए।
  50. प्रश्न- आर्य कौन थे? उनके मूल निवास स्थान सम्बन्धी मतों की समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- वैदिक साहित्य से आपका क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख अंगों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- आर्य परम्पराओं एवं आर्यों के स्थानान्तरण को समझाइये।
  53. प्रश्न- वैदिक कालीन धार्मिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- ऋत की अवधारणा का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- वैदिक देवताओं पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  56. प्रश्न- ऋग्वैदिक धर्म और देवताओं के विषय में लिखिए।
  57. प्रश्न- 'वेदांग' से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
  58. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन समाज में हुए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
  60. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल में शासन प्रबन्ध का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के शासन प्रबन्ध की रूपरेखा पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- वैदिक कालीन आर्थिक जीवन का विवरण दीजिए।
  63. प्रश्न- वैदिक कालीन व्यापार वाणिज्य पर एक निबंध लिखिए।
  64. प्रश्न- वैदिक कालीन लोगों के कृषि जीवन का विवरण दीजिए।
  65. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल के पशुपालन पर टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- वैदिक आर्यों के संगठित क्रियाकलापों की विवेचना कीजिए।
  68. प्रश्न- आर्य की अवधारणा बताइए।
  69. प्रश्न- आर्य कौन थे? वे कब और कहाँ से भारत आए?
  70. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में वेदों का महत्त्व बताइए।
  71. प्रश्न- यजुर्वेद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- ऋग्वेद पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- वैदिक साहित्य में अरण्यकों के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- आर्य एवं डेन्यूब नदी पर टिप्पणी लिखिये।
  75. प्रश्न- क्या आर्य ध्रुवों के निवासी थे?
  76. प्रश्न- "आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया था।" विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- संहिता ग्रन्थ से आप क्या समझते हैं?
  78. प्रश्न- ऋग्वैदिक आर्यों के धार्मिक विश्वासों के बारे में आप क्या जानते हैं?
  79. प्रश्न- पणि से आपका क्या अभिप्राय है?
  80. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- ऋग्वैदिक कालीन उद्योग-धन्धों पर टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- वैदिक काल में सिंचाई के साधनों एवं उपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  83. प्रश्न- क्या वैदिक काल में समुद्री व्यापार होता था?
  84. प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
  85. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल में प्रचलित उद्योग-धन्धों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए?
  86. प्रश्न- शतमान पर एक टिप्पणी लिखिए।
  87. प्रश्न- ऋग्वैदिक कालीन व्यापार वाणिज्य की विवेचना कीजिए।
  88. प्रश्न- भारत में लोहे की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- ऋग्वैदिक आर्थिक जीवन पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- वैदिककाल में लोहे के उपयोग की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- नौकायन पर टिप्पणी लिखिए।
  92. प्रश्न- सिन्धु घाटी की सभ्यता के विशिष्ट तत्वों की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोग कौन थे? उनकी सभ्यता का संस्थापन एवं विनाश कैसे.हुआ?
  94. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की आर्थिक एवं धार्मिक दशा का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- वैदिक काल की आर्यों की सभ्यता के बारे में आप क्या जानते हैं?
  96. प्रश्न- वैदिक व सैंधव सभ्यता की समानताओं और असमानताओं का विश्लेषण कीजिए।
  97. प्रश्न- वैदिक कालीन सभा और समिति के विषय में आप क्या जानते हैं?
  98. प्रश्न- वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति का वर्णन कीजिए।
  99. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के कालक्रम का निर्धारण कीजिए।
  100. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विस्तार की विवेचना कीजिए।
  101. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता का बाह्य जगत के साथ संपर्कों की समीक्षा कीजिए।
  102. प्रश्न- हड़प्पा से प्राप्त पुरातत्वों का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- हड़प्पा कालीन सभ्यता में मूर्तिकला के विकास का वर्णन कीजिए।
  104. प्रश्न- संस्कृति एवं सभ्यता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  105. प्रश्न- प्राग्हड़प्पा और हड़प्पा काल का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- प्राचीन काल के सामाजिक संगठन को किस प्रकार निर्धारित किया गया व क्यों?
  107. प्रश्न- जाति प्रथा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- वर्णाश्रम धर्म से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइये।
  109. प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
  110. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में संस्कारों के प्रयोजन पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।
  112. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- वैष्णव धर्म के उद्गम के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  114. प्रश्न- महाकाव्यकालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  115. प्रश्न- पुरातत्व अध्ययन के स्रोतों को बताइए।
  116. प्रश्न- पुरातत्व साक्ष्य के विभिन्न स्रोतों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- पुरातत्वविद् की विशेषताओं से अवगत कराइये।
  118. प्रश्न- पुरातत्व के विषय में बताइए। पुरातत्व के अन्य उप-विषयों व उसके उद्देश्य व सिद्धान्तों से अवगत कराइये।
  119. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  120. प्रश्न- पुरातात्विक स्रोतों से प्राप्त जानकारी के लाभों से अवगत कराइये।
  121. प्रश्न- पुरातत्व को जानने व खोजने में प्राचीन पुस्तकों के योगदान को बताइए।
  122. प्रश्न- विदेशी (लेखक) यात्रियों के द्वारा प्राप्त पुरातत्व के स्रोतों का विवरण दीजिए।
  123. प्रश्न- पुरातत्व स्रोत में स्मारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  125. प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
  126. प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
  127. प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- "सभ्यता का पालना" व "सभ्यता का उदय" से क्या तात्पर्य है?
  129. प्रश्न- विश्व में नदी घाटी सभ्यता के विकास पर प्रकाश डालिए।
  130. प्रश्न- चीनी सभ्यता के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  131. प्रश्न- जियाहू एवं उबैद काल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  132. प्रश्न- अकाडिनी साम्राज्य व नॉर्ट चिको सभ्यता के विषय में बताइए।
  133. प्रश्न- मिस्र और नील नदी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  134. प्रश्न- नदी घाटी सभ्यता के विकास को संक्षिप्त रूप से बताइए।
  135. प्रश्न- सभ्यता का प्रसार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  136. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विस्तार के विषय में बताइए।
  137. प्रश्न- मेसोपोटामिया की सभ्यता पर प्रकाश डालिए।
  138. प्रश्न- सुमेरिया की सभ्यता कहाँ विकसित हुई? इस सभ्यता की सामाजिक संरचना पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालिए।
  139. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता के भारतवर्ष से सम्पर्क की चर्चा कीजिए।
  140. प्रश्न- सुमेरियन समाज के आर्थिक जीवन के विषय में बताइये। यहाँ की कृषि, उद्योग-धन्धे, व्यापार एवं वाणिज्य की प्रगति का उल्लेख कीजिए।
  141. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  142. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता की लिपि का विकासात्मक परिचय दीजिए।
  143. प्रश्न- सुमेरियन सभ्यता की प्रमुख देनों का मूल्यांकन कीजिए।
  144. प्रश्न- प्राचीन सुमेरिया में राज्य की अर्थव्यवस्था पर किसका अधिकार था?
  145. प्रश्न- बेबीलोनिया की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? इस सभ्यता की सामाजिक.विशिष्टताओं का उल्लेख कीजिए।
  146. प्रश्न- बेबीलोनिया के लोगों की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  147. प्रश्न- बेबिलोनियन विधि संहिता की मुख्य धाराओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- बेबीलोनिया की स्थापत्य कला पर प्रकाश डालिए।
  149. प्रश्न- बेबिलोनियन सभ्यता की प्रमुख देनों का मूल्यांकन कीजिए।
  150. प्रश्न- असीरियन कौन थे? असीरिया की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख करते हुए बताइये कि यह समाज कितने वर्गों में विभक्त था?
  151. प्रश्न- असीरिया की धार्मिक मान्यताओं को स्पष्ट कीजिए। असीरिया के लोगों ने कला एवं स्थापत्य के क्षेत्र में किस प्रकार प्रगति की? मूल्यांकन कीजिए।
  152. प्रश्न- प्रथम असीरियाई साम्राज्य की स्थापना कब और कैसे हुई?
  153. प्रश्न- "असीरिया की कला में धार्मिक कथावस्तु का अभाव है।' स्पष्ट कीजिए।
  154. प्रश्न- असीरियन सभ्यता के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  155. प्रश्न- प्राचीन मिस्र की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? मिस्र का इतिहास जानने के प्रमुख साधन बताइये।
  156. प्रश्न- प्राचीन मिस्र का समाज कितने वर्गों में विभक्त था? यहाँ की सामाजिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  157. प्रश्न- मिस्र के निवासियों का आर्थिक जीवन किस प्रकार का था? विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- मिस्रवासियों के धार्मिक जीवन का उल्लेख कीजिए।
  159. प्रश्न- मिस्र का समाज कितने भागों में विभक्त था? स्पष्ट कीजिए।
  160. प्रश्न- मिस्र की सभ्यता के पतन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  161. प्रश्न- चीन की सभ्यता के विषय में आप क्या जानते हैं? इस सभ्यता के इतिहास के प्रमुख साधनों का उल्लेख करते हुए प्रमुख राजवंशों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  162. प्रश्न- प्राचीन चीन की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख कीजिए।
  163. प्रश्न- चीनी सभ्यता के भौगोलिक विस्तार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  164. प्रश्न- चीन के फाचिया सम्प्रदाय के विषय में बताइये।
  165. प्रश्न- चिन राजवंश की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।

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